गुरुवार, 21 मार्च 2024

यदि आपके लिए पर्याप्त रोशनी नहीं है -एको सोपोव


विश्व कविता दिवस पर पढिए मेकडोनियन कवि एको सोपोव की एक कविता  का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद । यूनेस्को वर्ष 1999 से 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मना  रहा है । इस वर्ष यूनेस्को मेकडोनियन कवि की जन्म-शताब्दी भी मना रहा है । 
---------------------------------------------

यदि आपके लिए पर्याप्त रोशनी नहीं है
-एको सोपोव

यदि नहीं है,आपके लिए पर्याप्त रोशनी 
तो मुझे अपने साथ ले  चलिए 
कि हो जाऊंगा मैं रात, एक ऐसी रात जो जल जाए
लाने के लिए दिन । 

और यदि  नहीं है आपके लिए पर्याप्त प्यार 
तब भी मुझे अपने साथ ले  चलिए 
कि बन जाऊंगा  मैं रात की आँखों की पुतलियाँ 
ताकि आप देख सकें मेरी आँखों में 
चमकते हुए सितारे । 

यदि  आपसे कोई नफरत भी नहीं करता 
तब तो जरूर ही मुझे अपने साथ ले चलिए 
क्योंकि मेरे हृदय के तल  में  खदक रहा है नरक 
अनंतकाल से अनंतकाल के लिए । 

किन्तु यदि नहीं हूँ, मैं ही आपके लिए पर्याप्त 
फिर प्रश्न उठता है कि मैं हूँ ही क्यों ?
सिवाय इसके कि मैं आपको देखता रहूँगा 
अनवरत एकटक 
मिट  जाने तक । 

(अनुवाद : अरुण चंद्र राय ) 

बुधवार, 20 मार्च 2024

गजल

वह यूं धीरे धीरे बदल रही है
रेत सी जिंदगी फिसल रही है  (1)


बदला है मौसम कुछ इस तरह
रूह उसकी बर्फ सी पिघल रही है (2)

हर बात पर हँसती भी वह कभी  
आज न किसी बात से बहल रही है (3)

बसंत जायेगा तो फिर आएगा 
कोयल है कह कर मचल रही है (4)

जो दौड़ेगा गिरेगा भी इस दुनिया में 
इसी हौसले से दुनिया टहल रही है (5)

हार जाएगी, नहीं छोड़ेगी हौसला 
यह जान बच्चों सी मचल रही है (6)

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

शहर का बसंत

 शहर का बसंत 

----------


इन दिनों शहर में आया हुआ है बसंत 

जहां वह गमले में खिल  रहा है

जबकि सड़कों के किनारे खड़े पेड़

या तो जा रहे हैं काटे या सुखाए। 

हां, सरकार की फाइलें

वृक्षारोपण के आंकड़ों से

 हो गई हैं मोटी। 


- अरुण चन्द्र रॉय

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

मातृभाषा

 मातृभाषा दिवस पर 

अरुण चन्द्र रॉय की कविता - मातृभाषा 

-----------

मेरी मातृभाषा में 

नहीं है

सॉरी, थैंक यू

धन्यवाद, आभार जैसे 

शब्द। 


मातृभाषा में बोलना 

होता है जैसे 

मां  छाती से लिपट जाना

माटी में 

लोट जाना


जब छूट  रही है मिट्टी, मां

और मातृभाषा 

हर बात के लिए

जताने लगा हूं आभार

कहने लगा हूं धन्यवाद

औपचारिक सा हो गया हूं। 


- अरुण चन्द्र रॉय

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

प्रेम

 प्रेम

दरअसल है 

एक बड़ा झूठ है


आसमान से तारे 

नहीं लाए जा सकते हैं 

तोड़कर

अन्यथा आसमान हो गए होते खाली

और धरती पर सुबुक रहे होते सब तारे


या टूटे हुए तारों को देख कर

मांगी गई मन्नतें भी 

नहीं होती हैं पूरी

नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां

बांधों के भीतर 


प्रेम में देने वाले जान

वास्तव में होते हैं बेहद कमजोर

जो नहीं खोद सकते खेत

उपजाने के लिए अन्न

और और ऐसे कमजोर लोग

नहीं होने चाहिए प्रेरणा। 


प्रेम वह है जिसे हम 

प्रेम कहते ही नहीं 

जैसे यदि कभी दिखे 

 किसी बूढ़े को सड़क पार कराते युवा 

तो समझिए वह प्रेम में है, उसके भीतर है 

एक कोमल हृदय


या फिर सड़क बुहारती स्त्री 

सुबह सुबह मुझे प्रेम में पड़ी प्रतीत होती है

जिसके केंद्र में होते हैं बच्चे, परिवार

किंतु इन चित्रों को नहीं रखा जाता है

प्रेम की श्रेणी में। 


क्षमा करना प्रिय ! 

मेरा प्रेम, दुनिया के प्रेम से है

थोड़ा अलग।

मेरे प्रेम हैं 

नदी, आसमान, आग, पानी, हवा, पहाड़, खेत

और सब के सब बेहद परेशान हैं, उदास हैं! 

हां, इस अंधी सुरंग के उस पार है

झीनी झीनी सी ज्योति, रोशनी!